लोकतंत्र के लिए जरूरी है शांति सेना

शांति सेना का विचार महात्मा गांधी का है। सबसे पहले उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह के दौरान इसका उल्लेख किया था । उन्होंने सत्याग्रह  की जो टोली बनाई थी, उसे अहिंसक सेना  कहा था।  1941 में अहमदाबाद में जब  सांप्रदायिक हिंसा हुई , तब   उन्होंने  वहां अपने सचिव महादेव भाई देसाई को भेजा था।  उन्होंने वहां शांति सद्भावना के लिए जो  टोली  बनाई थी उसका नाम शांति सेना दिया था।   गांधी जी का पूरा जीवन शांति सैनिक की बेमिसाल नज़ीर है । लेकिन जीवन के अंतिम दो वर्ष में उन्होंने जो शांति सेना का कार्य किया, वह अभूतपूर्व और अद्वितीय था। जिसका इतिहास में  अन्यत्र कोई  उदाहरण देखने को नहीं मिलता।  चाहे बिहार की सांप्रदायिक हिंसा हो या दिल्ली और कोलकाता की या नोआखली   सब जगह गांधी जी ने  शांति सेना का जो  कार्य किया वह,  किसी चमत्कार से कम नहीं था । इसके बारे में भारत के अंतिम वायसराय और  और प्रथम गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन ने कहा था जो काम उत्तर –  पश्चिमी सीमा पर 55000 सैनिक नहीं कर पाए,  वह काम एक आदमी ने पूर्वी सीमा पर कर दिया । उन्होंने उन्हें वन मैन आर्मी फोर्स कहा था।  मृत्यु से कुछ दिन पहले गांधी जी ने अपने साथियों को सेवाग्राम बुलाया था ,  शांति सेना पर चर्चा और संभव हो  तो शांति सेना के गठन के लिए। लेकिन 30 जनवरी 1948 को उनकी हत्या हो गई और गांधी जी यह काम  पूरा नहीं कर पाए।

गांधी जी के इस काम को आचार्य विनोबा भावे ने पूरा किया। भूदान आंदोलन के दौरान  उन्होंने 11 जुलाई,  1957 को  कोझिकोड , केरल में शांति सेना की स्थापना की। वे उसके सुप्रीम कमांडर थे। बाद में  इस काम को जय प्रकाश नारायण और नारायण देसाई ने आगे बढ़ाया। शांति का मतलब किसी को चोट पहुंचाने,  पहुंचाने, परेशान करने की मानसिक इरादों का अभाव है।  यानी सभी के प्रति सद्भावना का होना।  हम कह सकते हैं कि  शांति का मतलब गरिमामय  जीवन,  दमन से मुक्ति, संसाधनों तक पहुंच, सांस्कृतिक स्वायत्तता एवं शक्तिशाली व्यक्ति या समूह तथा राज्य की हिंसा से मुक्ति का होना है। सेना का अर्थ मरने -मिटने की भावना से इकट्ठे हुए लोग जिनमें संगति हो। हम कह सकते हैं कि शांति सेना का मतलब आत्मसमर्पण की भावना से शांति के लिए समर्पित लोगों की टीम । विनोबा जी ने कहा ‘सर्व सामान्य समय में सेवा का काम और विशिष्ट मौके पर अपना सर समर्पण करके शांति लाने की तैयारी, यह है शांति सेना का काम। शांति सेना दुखितों  की निष्काम, निष्पक्ष और निरपेक्ष सेवा करने वाली सेना है। इसमें एक शक्ति है । इसमें शक्ति प्रकट हो जाएगी तो दुनिया के मसले हल हो जाएंगे। शांति सेना के सैनिकों का शस्त्र होगा प्रेम। शांति सेना का मूल आधार है करुणा।  जो करुणा डरपोक बनाती है, क्रुरता का रूप लेती है, वह सच्ची करुणा नहीं है ।’ शांति  सेना के लिए ईश्वर में अटूट विश्वास होना आवश्यक है । गांधी जी कहते हैं कि जिस प्रकार हिंसक सेना के लिए तालीम की आवश्यकता  होती है  उसी प्रकार अहिंसक सेना के लिए भी  तालीम की आवश्यकता होती है।  जिस प्रकार हिंसक सेना को मारने की तालीम दी जाती है, उसी प्रकार अहिंसक सेना को मरने  की तालीम सीखनी होती है।

  विनोबा जी कहते हैं कि शांति सेना एक ऐतिहासिक आवश्यकता है।  आज दुनिया की स्थिति बहुत कठिन है।  यहां बहुत से अस्त्र – शस्त्र हो गयें हैं।  जिधर देखो उधर ही शस्त्र है।  यह शस्त्र मानव के हाथ नहीं मानव ही उसके हाथ में है। इसलिए आज की स्थिति में अहिंसा के सिवा कोई इलाज नहीं है।  दुनिया में जो हाल है, उसमें अहिंसा अत्यंत आवश्यक है । अहिंसा का विचार प्रेरक भी है और तारक  भी।  यह विचार आध्यात्मिक भी है और वैज्ञानिक भी । वे कहते हैं कि शांति सेना के सैनिक को सत्याग्रह के लिए तैयार रहना चाहिए । सत्याग्रही  के हृदय को अनुशासन में रखने का रास्ता अहिंसा के सिवा और कोई नहीं हो सकता।

 यदि अहिंसा नहीं हो,  तो देश के सामने झगड़ा पैदा होंगे।  यहां अनेक जातियां, अनेक धर्म, अनेक भाषाएं और अनेक प्रदेश हैं। इन सब के रहते अहिंसा नहीं रही, तो छोटे -छोटे मसाले का हल करने के लिए हिंसा का प्रयोग करना होगा। जिससे देश की शक्ति  क्षीण होगी।  अनेकता में एकता देश की विशेषता है।  प्रश्न यह है कि भारत की अनेकता में एकता किस  शक्ति से टिक सकती है? क्या पुलिस या सैन्यशक्ति से टिक सकती है? या सिर्फ संविधान की कानून से टिक सकती है ? स्पष्ट है मानवीय एकता इन प्रयासों से नहीं,  हृदय के प्रेम ,उदारता और परस्पर की सहकारिता से टिक सकती है । भारत के एकात्मता टिकाने और बढ़ाने के लिए उत्तम साधन है शांति सेना।

भारत की एकात्मकता की रक्षा के लिए  इसका एक गुण है धर्मनिरपेक्षता । भारत के संदर्भ में इसका अर्थ है सर्व धर्म समभाव । इसके लिए गतिशील आंदोलन की आवश्यकता है, जो समाज में प्रेम और न्याय का साथ-साथ प्रयोग कर सके।  जो अल्पसंख्यकों को समुचित सुरक्षा के साथ बहुसंख्यकों को संतोष भी दे सके । यह काम शांति सेना के द्वारा हो सकता है । इसलिए शांति सेना आवश्यक है।

भारत दुनिया का सबसे बड़ा गणतंत्र है । लेकिन गणतंत्र का आधार सिर्फ उसके संविधान में नहीं, बल्कि जनता की जागरूकता पर निर्भर करती है।  जो जनता  सजग  नहीं रहती,  वह अपने हाथों से गणतंत्र की कब्र खोदती  है।  गणतंत्र को जिंदा रखने के लिए आवश्यक है, जनतांत्रिक तरीकों पर विश्वास।  जहां जनता या सरकार अ- जनतांत्रिक तरीकों का इस्तेमाल करती है, वहां जनतंत्र कमजोर होता है।  जहां जनता या सरकार अपने प्रश्नों के समाधान के लिए अ- जनतांत्रिक साधनों का इस्तेमाल करती है,  वहां लोगों के मन में लोकतंत्र के प्रति विश्वास खत्म हो जाता है और किसी भी समय वहां किसी प्रकार की तानाशाही प्रवेश कर सकती है ।  जनता  जब अपने  प्रश्नों के समाधान के लिए छिटपुट  या संगठित हिंसा के  साधनों को सफल होते देखती  है,  तो धीरे-धीरे उसके दिल में हिंसात्मक प्रयोगों पर उसका विश्वास बढ़ता जाता है। जहां सरकार बार-बार पुलिस द्वारा लाठी चार्ज, अश्रुगैस या गोली का प्रयोग  या फौज का इस्तेमाल  करती है,  वहां  न केवल सरकार , बल्कि जनता के मन में सेना की प्रतिष्ठा बढ़ती है और सैनिक या अन्य किसी प्रकार की तानाशाही का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। यदि हमें इस हालात से बचाना है,  तो  जनता को हर तरह से जाग्रत रह कर  जनतंत्र के मूल गहरे करने के प्रयत्न करने  होंगे। वर्ना  किसी  समय वहां किसी प्रकार का तानाशाही प्रवेश कर सकता है।  छिटपुट या संगठित हिंसा अ-जनतांत्रिक तरीके हैं।  जनतंत्र की मूल गहरी करने का समुचित उपाय है, अपनी समस्याओं को शासन के हाथ सुपुर्द  नहीं कर   अपने आप हल करने की कोशिश करना।  भूदान – ग्रामदान ने भारत के प्रमुख समस्या को हल करने का तरीका दिखाएं। शांति सेना भी इस प्रकार जनतंत्र को गहरा ले जाने का  कारगर साधन है।  जब तक लोकतंत्र अहिंसा के नींव  पर खड़ा नहीं किया जाए,  तब तक उसमें पूर्णता नहीं आती।

स्थायी शांति और समृद्धि के लिए शांति सेना आवश्यक है । हम कह सकते हैं कि देश की एकता, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र की मजबूती और स्थायी शांति और समृद्धि के लिए शांति सेना प्रेरक भी है और तारक भी।

अशोक भारत

8709022550

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