विनोबा : अहिंसक क्रांति के अग्रदूत
आचार्य विनोबा भावे का जीवन सत्य, प्रेम एवं करुणा से सिंचित, पल्लवित एवं पुष्पित एक बेमिसाल नजीर था । विनोबा जी बंगाल की क्रांति एवं हिमालय की शांति की तलाश में 1916 में वाराणसी पहुंचे फिर वहां से गांधी जी के पास पहुंच गए । इन दो महापुरुषों के मिलन ने विश्व मानव के इतिहास को नई दिशा दी, सभ्यता को उस शिखर पर ले गए जिनके तेज पुंज के आलोक से युद्ध और हिंसा से झुलसती दुनिया आज भी शीतलता प्राप्त कर सकती है ।
विनोबा जी का जन्म 11 सितंबर, 1895 को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के एक छोटा – सा गांव गागोदा में हुआ था। इनका असली नाम विनायक नरहरि भावे था। मां इन्हें प्यार से विन्या कह कर पुकारती थी । पिता का नाम नरहरि शम्भू राव भावे और माता का नाम रुक्मिणी बाई (रखुमाई) था। इनके दादा का नाम शंभू राव भावे था। विनोबा का नाम तो गांधी जी का दिया हुआ है, जिस नाम से पूरी दुनिया आज उन्हें जानती है । विनोबा जी के दादा शंभू राव बड़े भक्त थे। रोज सुबह वे शिवजी की पूजा करते थे। विनोबा जी वहीं बैठे रहते थे। एक दिन की घटना घटी । दादा नित्य की भांति पूजा पर बैठे थे। इतने में भगवान की मूर्ति पर एक बिच्छू आकर बैठ गया । देखने वाले सब लोग चिल्लाने लगे, बिच्छू है इसे मार डालो। सबको रोकते हुए दादा ने कहा बिच्छू ने भगवान का आश्रय लिया है, इसलिए उसे मत मारो। उन्होंने भगवान की पूजा सांगोपांग पूरी की। बिच्छू वहीं बैठ रहा। थोड़ी देर में वहां से उतर कर चला गया। विनोबा जी के मन पर इस घटना का गहरा असर हुआ । जिसने भगवान का आश्रय लिया है, वह हमारे लिए आदरणीय है।
विनोबा जी की मां भक्तह्रदय थी। वह रोज पूजा करती थी। वह ईश्वरनिष्ठ, परोपकारी एवं अत्यंत सुसंस्कारी महिला थी। उन्हें सैकड़ो भजन कंठस्थ थे। माॅं का बिनोवा जी पर गहरा असर पड़ा। उनका मानना था कि वह जो कुछ भी है, अपनी मां की वजह से है। विनोबा जी ने गीता का मराठी अनुवाद गीताई (गीता + आई =गीताश्री) किया। वह मां के कारण ही किया। वह कहते थे कि मां ने मुझे मानव के आचार धर्म (आचरण के उसूल) की शिक्षा दिया । उनका मानना था कि भूदान आंदोलन के दौरान जो भी कार्य हुआ वह मां की शिक्षा के कारण ही हुआ ।
आजादी के बाद देश उथल-पुथल के दौर से गुजर रहा था। बंटवारे के कारण देश की परिस्थिति विषम थी। गांधी की शहादत के कारण देश में घोर निराशा का वातावरण था, सन्नाटा पसरा हुआ था। गांधी के बाद आगे क्या? यह यक्ष प्रश्न बनकर खड़ा था। ऐसे में लोगों का ध्यान विनोबा जी ओर गया । विनोबा जी ने न केवल इस दायित्व का सफलतापूर्वक निर्वाह किया , बल्कि सर्वोदय दर्शन और अहिंसा के प्रयोग को नई उंचाई पर पहुंचाया। गांधी जी ने अपने प्रयोगों से पहले दक्षिण अफ्रीका फिर भारत की आजादी की लड़ाई में साबित कर दिया था की अहिंसा व्यक्ति के साथ समाज का भी मूल्य हो सकता है । हिंसा का जवाब अहिंसा से दिया जा सकता है । दर्शन के रूप में गांधी जी ने सर्वोदय का विचार लोगों के सामने रखा। विनोबा ने इन प्रयोगों को आगे बढ़ाया ,उसे शिखर पर पहुंचाया , जिसका इतिहास में कोई सानी नहीं, बिल्कुल अनोखा, अद्वितीय । विनोबा कि शब्दों में ‘अहिंसा की खोज करना मेरा जीवनकार्य रहा । मेरी शुरू हुई प्रत्येक कृति ,हाथ में लिया हुआ प्रत्येक काम – सब उसी एक प्रयोग के लिए हुए और हो रहे हैं । मैं एक अलग दुनिया का आदमी हूॅं। मेरे पास प्रेम है। मेरे पास मत नहीं है ।मेरे पास विचार है ।विचार मुक्त होते हैं। वे बंधे हुए नहीं होते। सज्जनों के साथ विचार विमर्श कर उनके विचार ले सकते हैं और अपने विचार उन्हें दे सकते हैं । प्रेम और विचार में शक्ति है वह किसी और में नहीं।जिस देश में सत्ता , सम्पत्ति के लिए महाभारत हुए, जहां जमीन के लिए भाई-भाई के बीच केस – मुकदमा, दुश्मनी आम बात है। वहां प्रेम और करुणा के आधार पर 47 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन भूमिहीनों के लिए प्राप्त करना कोई चमत्कार से कम नहीं था। पोचमपल्ली से निकलने वाली भूदान गंगा की निर्मल धारा न केवल पूरे देश में पहुंची, बल्कि इसकी गूंज विदेशों में भी सुनी गई । न केवल भूमिहीनों के लिए जमीन मिले, बल्कि ऐसे अनेक चमत्कार हुई, जिसकी कल्पना भी करना मुश्किल था। तेलंगाना में जमीन का प्रश्न का हल अहिंसा के रास्ते निकाला। हिंसा की ज्वाला शांत हुई । 900 वर्षों से चंबल घाटी में जारी हिंसा से मुक्ति का मार्ग खुला। जो काम तुर्क – मुगल शासन से लेकर अंग्रेजों तक तथा आजादी के बाद की सरकारें करने में नाकाम रही , उसे विनोबा भावे ने प्रेम – करुणा के आधार पर करने में सफलता पाई। भूदान आंदोलन के दौरान ही ग्रामदान का विचार आया । मंगरोठ (उत्तर प्रदेश) पहला ग्रामदानी गांव बना । विनोबा जी ने इसे डिफेंस मेजर कहा । 13 साल तक अनवरत 80000 किलोमीटर से ज्यादा की पदयात्रा अपने आप में अद्वितीय घटना थी। इस दौरान कई श्रेष्ठ विचार उन्होंने समाज के सामने रखें। जिससे सर्वोदय विचार को नई ऊर्जा और गति मिली । उन्होंने उसमें अर्थ और आश्रय भरे। उसे पुष्ठ एवं समृद्ध किया । जिसमें ग्रामदान, संपत्ति दान, सम्मति दान आदि शामिल है। इसी दौरान जय जगत , सर्वोदय पत्र एवं शांति सेना आदि के उदात्त विचार हमें मिले । आंध्र प्रदेश (वर्तमान में तेलंगाना) के जी बी सुब्बाराव, जो भूदान यात्रा में शामिल थे, कहते हैं उन्होंने यह संकल्प लिया था कि जिस दिन जमीन दान में नहीं मिलेगा उस दिन वह भोजन नहीं करेंगे। इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि उस समय का माहौल कैसा था। जैसे पारस मणि के संपर्क में आने से हर लोहा सोना बन जाता है, उसी प्रकार बाबा विनोबा का व्यक्तित्व था, जो भी उनके संपर्क में आया उनके जीवन में बदलाव और निखार सहज ही हो जाता था। यहां एक घटना का उल्लेख करना प्रासंगिक होगा । चौथी कक्षा में पढ़ने वाला 9 साल का एक लड़के ने पंडित नेहरू को उनके जन्मदिन पर पत्र लिखा – ‘मेरे प्यारे नेहरू चाचा आचार्य विनोबा भावे गरीबों के लिए जमीन दान मांगते हैं। इसीलिए मैं अपनी पूरी 70 एकड़ जमीन, दो कुएं और एक मकान सब दे रहा हूं। मैं आपसे प्रार्थना करता हूं यह सारी जमीन – जायदाद आप फौरन अपने कब्जे में कर ले। यह सारी जायदाद मेरे दादाजी की थी। अब मेरे पिताजी उसके एक मात्र वारिस हैं। मैं उनकी इजाजत लेकर ही यह दान दे रहा हूं। उनके पिता ने भी लिखा था इस दान को स्वीकार कर बच्चों को आशीर्वाद दें, ताकि आगे चलकर देश का सच्चा सेवक बने । इससे समझा जा सकता है कि भूदान आंदोलन के कारण देश में किस तरह का वातावरण का निर्माण हुआ था।
भारत की संस्कृति समन्वय की संस्कृति है। हमारे धर्म के अंदर के उदात्त विचार को राम कृष्ण परमहंस – विवेकानंद ने पूरी दुनिया के पटल पर रखा। विवेकानंद ने शिकागो के धर्म संसद में कहा था कि जिस प्रकार नदियां अलग-अलग मार्गो से चलकर समुद्र में मिल जाती है, उसी प्रकार भिन्न-भिन्न धर्म ईश्वर तक पहुंचाने के अलग-अलग मार्ग है। विवेकानंद के सर्वधर्म समभाव के विचार को महात्मा गांधी ने आगे बढ़ाया। बाबा विनोबा ने इसका और विस्तार किया। बाबा विनोबा ने विश्व के सभी प्रमुख धर्म ग्रंथो का गहरा अध्ययन कर उसका सार प्रस्तुत किया। जो बाबा विनोबा की समाज की अमूल्य देन है। उन्होंने जिस श्रद्धा और भक्ति से वेद -उपनिषद- गीता का अध्ययन किया उसी आदर और भक्ति से दूसरे धर्म ग्रंथो का भी अध्ययन किया। कुरान के अध्ययन के लिए अरबी भाषा पढ़ी । बौद्धों के धम्मपद के अध्ययन के लिए पाली पढ़ी । कुरान, बाइबिल का सालों तक अध्ययन किया । इस प्रकार विश्व के सभी प्रमुख धर्म ग्रन्थों का सार हमें दिया। सभी धर्म में सत्य का पालन अहिंसा से यानी प्रेम से बरतें और जरूरतमंदों की सेवा के लिए दौड़ कर जाएं , यह मानवता का धर्म है । यानी सत्य, प्रेम और करुणा यही सभी धर्मों का सार है। पूजा पद्धति सभी धर्मों के अलग-अलग आवश्यक है, परंतु मुख्य बात सभी धर्मों में एक ही है। फिर झगड़ा क्यों? यह बात अगर समझ में आ गई तो एक दूसरे के लिए प्रेम महसूस होने लगेगा । आज जब धर्म के नाम पर लड़ाई झगड़ों की खबरें समाचारों की सुर्खियां बन रही है, वैसे में विनोबा जी के विचार हमारे लिए तारक हो सकता है। जरूरत इस बात की है कि विनोबा जी ने जो सभी धर्मों के नवनीत हमारे सामने प्रस्तुत किया उसका अध्ययन कर उसे समाज में फैलाएं, तो समाज में प्रेम , शांति और सद्भावना कायम होगी और सही अर्थों में समृद्धि आएगी।
अशोक भारत
8709022550
Recent Comments