पानी पहुंचा पाताल : जनता बेहाल
ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत के साथ ही देश में जल संकट गहराने लगता है । पानी के लिए लंबी कतारे, सूखती नदियां एवं नलकूप , जलाशयों के घटते जलस्तर चिंता का कारण हैं । तमाम सरकारी प्रयासों एवं योजनाओं के वर्ष दर वर्ष यह संकट बढ़ता ही जा रहा है।
सिलिकॉन सिटी बेंगलुरु आज गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है । बेंगलुरु के 257 इलाकों को भीषण जल संकट ग्रस्त क्षेत्र घोषित किया गया है। बेंगलुरु को 145 करोड़ लीटर पानी कावेरी नदी से मिलता है तथा 60 करोड़ लीटर पानी बोरवेल से आता है । अब दोनों स्रोत सूख रहे हैं। शहर में एक दिन छोड़कर पानी दिया जा रहा है। बेंगलुरु के मुख्य जलाशय में सिर्फ 16 फ़ीसदी। जलभराव शेष है, जबकि बेंगलुरु पर्याप्त बारिश वाला क्षेत्र है।
आज हम जो संकट बेंगलुरु में देख रहे हैं, यह वह अगले कुछ सालों में देश के कई शहरों में देखने को मिल सकता है । ये शहर है , मुंबई, चेन्नई, जयपुर, लखनऊ, दिल्ली आदि। कमजोर मानसून, भूजल का लगातार घटता जलस्तर, सूखते जलाशय , अत्यधिक शहरीकरण के साथ-साथ जल का कुप्रबंधन के कारण यह संकट उत्पन्न हुआ है।
गौरतलब है कि दुनिया में सबसे ज्यादा भूजल का इस्तेमाल भारत में हो रहा है। यह अमेरिका और चीन दोनों के इस्तेमाल से ज्यादा है । भारत में 253 अरब क्यूबिक मीटर जल निकाला जा रहा है जो दुनिया का 25 फीसदी है । भारत के कुछ राज्यों में हालात बेहद गंभीर है । दक्षिण भारत के केरल राज्य को छोड़कर सभी राज्यों में जल भराव गिरा है । स्थिति उत्तर भारत में भी भिन्न नहीं है । राजस्थान में पिछले साल की तुलना में 9 फीसदी कम जलाशयों का जलभराव हुआ है । उत्तर के राज्यों में जलाशय 34 फ़ीसदी ही भरे हैं, जबकि दक्षिण भारत में यह 24 फीसदी है।
केंद्रीय जल आयोग की निगरानी वाले देश के 150 जलाशयों में सिर्फ 40 फीसदी ही जल शेष है । संयुक्त राष्ट्र की युनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट फॉर एनवायरमेंट एंड ह्यूमन सिक्योरिटीज की ओर से तैयार की गई इंटरक्नेक्ट डिजास्टर रिस्क रिपोर्ट के अनुसार भारत में गंगा सिंधु के कुछ क्षेत्र पहले ही भूजल की कमी के खतरनाक स्तर को पार कर चुके हैं। पूरे उत्तर पश्चिम क्षेत्र में 2025 तक इसका असर दिखना भी शुरू हो जाएगा।
बिहार सरकार के आर्थिक सर्वे 2022-23 में कहा गया है कि राज्य के औरंगाबाद, नवादा, कैमूर , जमुई, सारण, सिवान, गोपालगंज, पश्चिम चंपारण, सीतामढ़ी, शिवहर, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया , कटिहार आदि जिलों में भूजल के स्तर एवं गुणवत्ता में गिरावट दर्ज की गई है । इससे आर्थिक गतिविधि पर प्रतिकूल असर के साथ-साथ लोगों के स्वास्थ्य एवं पर्यावरण भी प्रभावित हो रहा है। गंगाजल में प्रदूषण की मात्रा मानक स्तर से बहुत ज्यादा है। यह गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारे अवस्थित शहरों के सीवेज एवं शहरी कचरा का नदियों में सीधे पहुंचने के कारण हो रहा है । राज्य में 1,14, 651 ग्रामीण वार्डों में 29 जिला के 30,207 वार्डों में भूजल प्रदूषित पाया गया है । यह लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डाल रहा है। टाइफाइड , डायरिया, हैजा, हेपेटाइटिस एवं कई वायरल बीमारियां इसके कारण उत्पन्न हो रहे हैं।
राज्य में 29 जलाशयों में से में पांच सूख गए हैं और 16 में 10 फीसदी से भी कम जल उपलब्ध है। 40 नदियों में पानी नहीं है। अन्य नदियों में पानी काफी कम है। नलकूप सूख रहे हैं।
जल के बिना जीवन संभव नहीं है। जल के बिना बड़ी-बड़ी योजनाएं एवं दावे सब बेकार है । आवश्यकता इस बात की है कि जल के संरक्षण एवं इस्तेमाल की ठोस और मुकम्मल योजना को क्रियान्वित किया जाए । वर्षा के जल के संरक्षण के लिए परंपरागत एवं वैज्ञानिक पद्धति को अपनाया जाए। नदियों को जलमल, कचरा ढोने वाली नाला बनाने वाली नीति को विराम दिया जाए । नदियों और तालाबों के अतिक्रमण हटाया जाए । उसे पुनर्जीवित किया जाए। जैसा कि कई जगह हो रहा है। जैसे पंजाब के सुल्तानपुर लोधी में कालीबेई नदी को पुनर्जीवित किया गया । यह काम सरकार और समाज को मिलकर करना होगा । जन जागरण के लिए लोक शिक्षण के कार्यक्रम बड़े पैमाने पर चलाया जाए। इसके लिए नागरिक समाज को सक्रिय भूमिका निभानी होगी।अगर हम आज नहीं जगे तो कल बहुत देर हो जायेगी। और आने वाली पीढ़ी का भविष्य असुरक्षित हो जाएगा।
अशोक भारत
8709022550
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