आजादी : सपने और हकीकत
लम्बे संघर्ष और कुर्बानियों के बाद देश आजाद हुआ। आजादी मिले सत्तर साल हो रहे हैं । आजादी का हमारा सपना क्या था? हमारे राष्ट्रनिर्माता किस प्रकार का राष्ट्र बनाना चाहते थे?
भगत सिंह एक ऐसा राष्ट्र बनाना चाहते थे जिसमें व्यक्ति के द्वारा व्यक्ति का और राष्ट्र के द्वार राष्ट्र के द्वारा काा शोषण नहीं हो।वे साम्राज्यवाद और साम्प्रदायिकता दोनो के खिलाफ थे। गांधी जी एक एेसा राष्ट्र बनाना चाहते थे जिसमें समाज का अंतिम व्यक्ति यह महसूस करे कि वह आजाद है और इसके विकास में उसका महत्वपूर्ण योगदान है। आज देश की स्थिति क्या है? हम इस लक्ष्य के कितने करीब या दूर है।
आजादी और उसके बाद जिस दृष्टि, दिशा, मूल्यों और कार्यक्रमों पर राष्ट्रीय सहमति थी उसको चुनौती देनेवाली, उस राष्ट्रीय सहमति को विघटित करने वाली और राष्ट्र को विपरीत दिश में ले जाने वाली कटिबद्ध ताकतें आज हाशिए से केन्द्र में आ गयी हैं। भारत का नव मध्यम वर्ग में सूचना क्रांति के द्वारा उत्तर आधुनिक युग की मानसिकता का विस्फोट हो रहा है। यह नयी मानसिकता आधुनिकता से उपजी सभी मानववादी अवधारणाओं और मूल्यों को नकारती है। यह सादगी के मूल्य और जीवन शैली का अवमूल्यन करती है। पृथ्वी को विलास और विहार भूमि के रूप में परिभाषित कर अमर्यादित भोगवाद के लिए जमीन तैयार करती है। यह मानव और प्रकृति और सभी मानवीय रिश्तो को नैतिक बंधनो से मुक्त कर अनैतिकता का विस्तार करती है। यह मानव स्वतंत्रता की ऐसी परिभाषा प्रस्तुत करती है,जिसकी परिणति उग्र व्यक्तिवाद में होती है और उन सभी पारंपरिक संस्थाओं के आधार को नष्ट करती है,जो मानव समाज को सुरक्षा और निरंतरता प्रदान करते आए है। भारत के मध्यम वर्ग में इस प्रकार की मानसिकता का उभार एकदम नई प्रक्रिया है, जो भारतीय पुनर्जागरण और स्वतंत्रता संग्राम की सभी आस्थाओं, मूल्यों, प्रतिबद्धताओं और सपनों पर प्रश्न चिन्ह लगाती है। मध्यमवर्ग राष्ट्र निर्माण और विकास में योगदान की दृष्टि सेे अयोग्य, असक्षम और असमर्थ साबित हो रहा है। उसकी जड़े अपनी देश की मिट्टी से कटती जा रही है और वे अपने देश के जन साधारण से अलग होते जा रहे हैं।वह पश्चिमी देशों के इस मिथक से अभी तक मुक्त नहीं है कि पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण ही भारत की नियति है यानी पश्चिम का विकास माँडल ही हमारे विकास का माँडल है। स्पष्ट है यह संकट विकास की उपभोक्तावादी पश्चिमी माँडल को अपनाने से उत्पन्न हुआ है । विकास की सही अवधारणा लोगों के बीच लाने की आवश्यकता है। विकास का मतलब भोग पर आधारित सिर्फ उच्च तकनीक और बड़ी पूंजी से चलने वाले बड़े उद्योग,बड़े-बड़े बांध, मॉलऔर मल्टीप्लेक्स, स्मार्ट सिटी , नगर महानगर का विकास क्यो है? भारत तो गाँवों का देश है गाँवों के विकास के बिना देश का विकास संभव नहीं है। इसलिए मौजूदा विकास नीति पर पुनर्विचार की आवश्यता है।
देश में साम्प्रदायिक और फासीवादी शक्तियां उभार पर है। साम्राज्यवाद, साम्प्रदायिकता एवं फासीवाद एक ही सिक्के के दो अलग-अलग चेहरे हैं। राजसत्ता लोकहित और नैतिक बल के आगे झुके इसके लिए लोकशक्ति को मजबूत करने की आवश्यकता है। नैतिक शक्ति आधारित लोक संगठनों का निर्माण एवं उसके माध्यम से नए मूल्यों को दाखिल करने की आवश्यकता है। लोक शिक्षण के द्वारा लोकविरोधी नीतियों के विरुद्ध व्यापक संवाद एवं सत्याग्रह आज वक्त की मांग है। आज अगर खामोश रहे, तो कल सन्नाटा छाएगा।
अशोक भारत
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