गाँधी–स्मरण — भवानी प्रसाद मिश्र
तुम्हारा रूप, जैसे जाड़े की धूप, हल्का और प्रकाशवान और आकर्षक, कि खड़े रहो छाया में उस धुप की घंटो तक, जी नहीं होता था हटने का. तुम्हारा स्नेह, जैसे जेठ में मेह,...
तुम्हारा रूप, जैसे जाड़े की धूप, हल्का और प्रकाशवान और आकर्षक, कि खड़े रहो छाया में उस धुप की घंटो तक, जी नहीं होता था हटने का. तुम्हारा स्नेह, जैसे जेठ में मेह,...
तुमने जन-जन को वाणी दी, दिया देश को नूतन जीवन. मुक्त किया धरती अम्बर को, काट-काट कर तम के बंधन. चरण रहे गतिवान तुम्हारे, आंधी,पानी,तूफानों में. तुमने विकट सुरंग लगाई, जड़ जीवन की चट्टानों...
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