बापू तुमको शत-शत वंदन –बाबूलाल जैन ‘जलज’

तुमने जन-जन को वाणी दी, दिया देश को नूतन जीवन.

मुक्त किया धरती अम्बर को, काट-काट कर तम के बंधन.

चरण रहे गतिवान तुम्हारे, आंधी,पानी,तूफानों में.

तुमने विकट सुरंग लगाई, जड़ जीवन की चट्टानों में.

कुटियों से महलों तक फूकी,आज़ादी की भीषण ज्वाला.

राष्ट्र-दीप अमर ज्योति भर, फैलाया घर-घर उजियाला.

सत्य-अहिंसा-शांति-प्रेम का, तुमने किया सदा पारायण.

अजर-अमर, अनुपम युग-प्रेरक, बापू तुमको शत-शत वंदन.

 

देशभक्ति को, राजनीति की, स्वार्थ-तुला पर कभी न तोला.

अग-जग के वैभव के सम्मुख, कभी तुम्हारा चित्त न डोला.

दिव्य भारती के मंदिर में, तुमने श्रद्धा-सुमन चढ़ाये.

निज संस्कृति के भव्य द्वार पर, जगमग-जगमग दीप जलाये.

नयी चेतना,नयी प्रेरणा, भर दी जन जन के तन-मन में .

भारत माँ की छवि उड़ेल दी, नयी सुबह की किरण-किरण में.

मुक्त कंठ से कोकिल कुहकी, चहक उठे खग, महक उठे वन.

विश्व-प्रेम की शुचि आराधक, बापू तुमको शत-शत वंदन.

 

बापू तुमतो चले गए पर, भारत माँ का चित्र अधूरा.

बोलो आकर कौन करेगा, राम-राज्य का सपना पूरा.

सत्य-अहिंसा के आँगन में,आज मचा भीषण कोलाहल.

राज-सभा में द्रुपद सुता का, खीँच रहा दु:शासन आँचल.

तोड़ रहा है शल्य, राष्ट्र का, युद्ध- भूमि में आज मनोबल .

शोषण,अत्याचार,अनय के, बादल घुमड़ रहें हैं प्रतिपल.

बापू एक बर फिर आकर, महका दो अपना घर- आँगन.

गूंज उठे फिर धरती-अम्बर,बापू तुमको शत-शत वंदन.

 

–बाबूलाल जैन  ‘जलज’     

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