ऐसे कैसे लड़ी जायेगी कोविड19 की लड़ाई?
5 मई, 2020 को दिल्ली पुलिस का एक सिपाही कोविड19 महामारी की भेट चढ गया । कोरोना वायरस से मरने वाले दिल्ली पुलिस का पहला व्यक्ति था। बताते हैं कि अमित कुमार उत्तर पश्चिम दिल्ली के भारत नगर थाना में कार्यरत था वह क्राइम डाटा कोलेटर था। थाने का क्राइम डाटा सेंट्रल आफिस में अपडेट कर वाता था।
अमित के साथियों का कहना है कि अमित ने 4 मई को ड्यूटी किया था। शाम को उसे बुखार हुआ। कुछ दवा खाने से उसे थोड़ा आराम महसूस हुआ । उसने खाना खाया ,फिल्म देखा और फोन से बातें की फिर सो गया । रात में उसकी तकलीफ बढ़ गई। उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। उसके साथियों ने उसे गर्म पानी और काढा दिया । उससे उसे थोड़ा आराम हुआ, मगर वह सो नहीं पाया। सुबह उसके साथी उसे दिल्ली पुलिस हैदरपुर टेस्टिंग सेंटर ले गए ।लेकिन वहां उसका उपचार नहीं हुआ। उसे बताया गया कि यहां सिर्फ टेस्टिंग होता है । उसे कई अस्पतालों में उसके साथी लेकर गए लेकिन कहीं भी उसका उपचार नहीं हुआ। सभी ने उसे एडमिट करने से मना कर दिया । अंत में उसका दीनबंधु अस्पताल में काफी कोशिश के बाद टेस्ट किया गया। मगर उपचार के लिए राम मनोहर लोहिया अस्पताल रेफर कर दिया गया। तब तक काफी समय निकल गया । अमित की हालत खराब हो गई। लोहिया अस्पताल ले जाने के क्रम में रास्ते में शाम 6:30 बजे उसने दम तोड़ दिया । जांच रिपोर्ट में वह कोरोना पॉजिटिव पाया गया।
अमित की मृत्यु ने कई सवाल खड़े किए । सबसे पहले अमित में कोरोना वायरस का कोई लक्षण 4 मई के शाम तक नहीं थे। ऐसी स्थिति में रोगियों को चिन्हित करना तथा उनका उपचार करना व्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती है । लगभग 1 महीने पूर्व भारत सरकार के स्वास्थ्य विभाग के तरफ से बताया गया था कि एसिम्टमेटिक मरीजों की संख्या 80 फ़ीसदी है । मगर इस चुनौती से निपटने के लिए विभाग एवं सरकार कोई कारगर उपाय करने में विफल रही है। अगर अमित का जांच समय पर हो जाता तो उसको उपचार कर उसे बचाया जा सकता था । विडंबना देखिए कि इस आपात स्थिति में आवश्यक सेवा देने वाले कर्मियों की पूरी सुरक्षा और उपचार की व्यवस्था भी दिल्ली में केंद्र और राज्य सरकारी नहीं कर पाई है। अगर होता तो अमित बिना उपचार के दम नहीं तोड़ता। एक तरफ प्रधानमंत्री इन्हें कोरोना वारियर कहते हैं उनके सम्मान में खाली और ताली बजाने की अपील करते है । सेना उन पर पुष्प वृष्टि करती है। दूसरी तरफ इलाज के अभाव में एक सिपाही दम तोड़ दे रहा है वह भी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली। इससे ज्यादा अफसोस जनक और दुखद और क्या हो सकता है ? क्या हमारी व्यवस्था इतनी निपट और असहाय हैं कि लॉकडाऊन के 44 दिन के बाद भी इससे लड़ने की मुकम्मल इंतजाम हमारे पास नहीं है। हम आवश्यक सेवा में लगे पुलिसकर्मियों की भी रक्षा नहीं कर पा रहे तो आज सामान्य लोगों की क्या बात की जाय। हालांकि मेरा ऐसा मानना है की बीमारी को बीमारी की तरह दिखना चाहिए और उससे निजात पाने के लिए पूरी तैयारी और शक्ति लगानी चाहिए मगर उसे युद्ध मानना युद्ध उन्मादी और बाजारवादी सोच है।
मृतक अमित की पत्नी के भाई रवि बताते हैं कि उसके साथियों ने उसे बताया कि उन्होंने अधिकारियों को फोन किया मगर किसी का जवाब समय पर नहीं आया । उनका यह भी मानना है कि अगर अमित की जगह कोई अधिकारी होता तो उसका उपचार किसी बड़े अस्पताल में हो जाता। जब पुलिस बल में यह भावना होगी तो किस मनोबल से वे इस महामारी में अपनी पूरी क्षमता से सेवा कर पाएंगे । उसके मृत्यु के बाद एल जी, मुख्यमंत्री, पुलिस आयुक्त ने दुख और मृतक के परिवार के प्रति संवेदना प्रकट किया है। मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने एक करोड़ की राशि मृतक के परिवार को देने की घोषणा की। यह अच्छी बात है। लेकिन समय पर उचित उपचार की व्यवस्था हो जाती तो दिल्ली सरकार को शायद एक करोड़ रुपया देने की जरूरत नहीं पड़ती। आखिर हमारी व्यवस्था कब जिम्मेदार बनेगी? आपातकाल में, इस विश्वव्यापी महामारी के दौर में भी अगर हमारी व्यवस्था पुराने ढर्रे पर चलेगी तो सरकार के स्तर पर जो भी कार्य योजना बन रही है उसे धरती पर कैसे उतारा जाएगा? अगर आधे अधूरे तरीके से सरकारी कार्य योजना को लागू किया जाएगा तो जिस तरह यह बीमारी तेजी से अपना प्रसार करती है उसका मुकाबला कैसे होगा? यह बीमारी किस प्रकार प्रसार कर रही है उसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 19 मार्च को जब प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम पहला संबोधन किया था इसमें कुल संक्रमित व्यक्तियों की संख्या 194 थी। आज यानी 21 मई ,2020 तक बढ कर 112359 हो गई है। 45300 लोग ठीक हुए हैं और 3435 लोगों की जान गई है ।
प्रधानमंत्री ने 24 मार्च को राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा था की महाभारत युद्ध 18 दिन में जीता गया और कोरोना के खिलाफ की युद्ध के लिए 21 दिन चाहिए। आज 58 दिन हो गए। लॉक डाउन का चौथा चरण जारी है और अभी स्थिति नियंत्रण में नहीं है। अब इसे कैसे समझा जाए? क्या प्रधानमंत्री ने 21 दिनों में कोरोना पर विजय की बात कही तो उनके पास कोविड 19 महामारी की भयावहता की पूरी तस्वीर साफ नहीं थी या जानकारी का आभाव था। जानकारी नहीं होने का कोई आधार नहीं हैं। क्योंकि प्रधानमंत्री के पास पूरा तंत्र, वैज्ञानिकों की पूरी टीम और सूचना तंत्र उपलब्ध होता है। यह उनके रणनीति योजना का हिस्सा हो सकता है या यह भी हो सकता है कि पूरा तंत्र उनकी अपेक्षाओं पर खड़ा नहीं उतरा हो। जो भी हो कोविड19 के कारण देश दुनिया के सामने जो विकट परिस्थिति उत्पन्न हुई है वह अभूतपूर्व है इसके पार पाना किसी देश के लिए आसान नहीं होगा।
सवाल उठता है कि हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा का इतना खस्ता हाल क्यों है ? दरअसल इसके पीछे वह विचारधारा है जो यह मानता है कि सरकार का काम सिर्फ शासन करना है बाकी सब चीजें बाजार पर छोड़ देना चाहिए। इसलिए हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा दिनोंदिन खासकर के 1991 के बाद कमजोर होती चली गई। इस दर्शन में सभी समस्याओं का समाधान बाजार के पास है। इसलिए हमारी निर्भरता निजी स्वास्थ्य सेवा पर बढ़ती गई । आज कोविड19 महामारी से पूरी दुनिया की व्यवस्था चरमराई हुई है। यह महज संयोग नहीं है कि अमेरिका में कोविड19 से संक्रमित और मरने वालों में सर्वाधिक अश्वेत लोग हैं, क्योंकि उन्हें वहां आवश्यक स्वास्थ्य सुरक्षा उपलब्ध नहीं है और इसके अभाव में पैसा देकर अस्पताल में इलाज कराना उनके पहुंच के बाहर है। हमारे देश की स्थिति तो और भी ज्यादा खराब है । सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के कमजोर होने से सर्वाधिक प्रभावित समाज के कमजोर तबका, गरीब लोग होते हैं । आज विश्व व्यापी कोविड19 महामारी से निपटने में बाजार कहीं भी सक्रिय नहीं है , बाजार मौन है और सब जगह सरकारें सक्रिय हैं। लेकिन पहले से बेजान हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था इस महामारी से निपटने में नाकाफी साबित हो रही है। इसके लिए हमारी सरकारों की नीतियां जिम्मेदार है। कोरोना वायरस ने यह अवसर प्रदान किया है कि हम अपनी नीति पर पुर्विचार करें और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा को मजबूत करें ताकि भविष्य में कोविड19 जैसी महामारी से निपटने में हम बेहतर तरीकें से तैयार रहे।
अशोक भारत
मो . 8709022550
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