कत्ल या कानून से समाज नहीं बदलता
अहिंसा के अनन्य उपासक ,महात्मा गांधी के परम शिष्य ,प्रथम सत्याग्रही तथा भूदान यज्ञ के प्रणेता आचार्य विनोबा भावे का अप्रतिम देन है आचार्यकुल। आचार्यकुलम विनोबा भावे की उदात्त संकल्पना है । भूदान यज्ञ के आगे का विचार। इसके निमित्त बने बिहार के तत्कालीन राज्यपाल डॉ जाकिर हुसैन जो विश्वविद्यालय परिसर में बढ़ रही छात्र अशांति से दुखी थे । उन्होंने अपनी परेशानी विनोबा जी के सामने रखी ।बाबा (विनोबा) ने कहा कि पहले शिक्षकों से बात करना होगा। इस प्रकार उनके तथा तत्कालीन शिक्षा मंत्री कर्पूरी ठाकुर के पहल पर पूसा में शिक्षाविदों की एक बैठक बुलाई गई । इस बैठक में बिहार के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों, कुलसचिवों, प्राचार्यों , विश्वविद्यालयों के विभागाध्यक्षों, भारत सरकार के शिक्षा मंत्री, शिक्षा विभाग के पदाधिकारी आदि शामिल हुए । फिर 8 मार्च 1968 को कहलगांव ,जहां कहौल मुनि का आश्रम है ,भागलपुर, बिहार में बिहार आचार्यकुल की स्थापना हुई ।
इसका नाम आचार्यकुल क्यो इसके बारे में विनोबा जी कहते हैं कि कुल सब परिवार वाचक है। हम सब आचार्यों का एक परिवार है। ज्ञान की उपासना करना ,चित्त शुद्धि के लिए सतत प्रयत्न करना, विद्यार्थियों के लिए वात्सल भाव रखकर उनके विकास के लिए सतत प्रयोग प्रयत्न करते रहना, सारे समाज के सामने जो समस्या आती है उन पर तटस्थ भाव से चिंतन करके सर्व सम्मत का निर्णय समाज के सामने रखना । समाज की हर प्रकार के गाइडेंस (मार्गदर्शन) देते रहना। यह परिवार स्थापना का ही कार्य है इसलिए इसका नाम आचार्यकुल रखा है।
विनोबा जी मानते थे कि इस देश को राजा ,महाराजा या सम्राटों ने नहीं बल्कि आचार्यों ने बनाया। आचार्यों का विशिष्ट स्थान है । विशिष्ट इसलिए कि वह निष्काम भाव से ईश्वरार्पण की भावना से कार्य करते हैं। आचार्यों का काम तारक , प्रेरक एवं पूरक है। जब तारक और प्रेरक शक्ति का मेल होता है तो शिवशक्ति या शुभशक्ति का निर्माण होता है। शुद्ध चित्त से जो कार्य होता है उसमें जो कमी रह जाती है उसकी पूर्ति के लिए भगवान दौड़े आते हैं। उसी प्रकार आचार्यों का भी काम है । उनका कहना था कि आचार्यकुल की स्थापना अधिकार प्राप्त करने के लिए नहीं है। यह तो अपने कर्तव्य के प्रति जागृति और और प्रयत्न करने के लिए है। आचार्यों का काम राजनीति को गाइडेंस( मार्गदर्शन) करने का है न कि उसमें दाखिल होने का । अगर आचार्य उसमें शामिल होंगे तो गलत रास्ते से रोकने वाला नहीं हो सकते । इसलिए आचार्य को इससे अलग रहना चाहिए। जीवन में श्रम शक्ति और ज्ञान शक्ति का मेल जरूरी है । आचार्य का काम श्रम शक्ति एवं ज्ञान शक्ति का समन्वय स्थापित करने वाला होना चाहिए। आचार्यकुल निर्भय, निर्वैर तथा निष्पक्ष आचार्यों का संगठन है।
स्पष्ट है देश के निर्माण में आचार्यों की महती भूमिका को ध्यान में रख कर आचार्यकुल की स्थापना की गई। विनोबा जी मानते थे कि कत्ल या कानून से समाज नहीं बदलता है । यानी हिंसा या दंड शक्ति से नए समाज का निर्माण नहीं हो सकता। हिंसा शक्ति विरोधी तथा दण्ड शक्ति से भिन्न तीसरी शक्ति लोकशक्ति यानी आचार्यों की शक्ति की बात विनोबा जी करते थे। इसलिए नए समाज बनाने की जिम्मेदारी आचार्यों पर है।
लेकिन आज देश में शिक्षा की स्थिति क्या है? इसमें न जीवन है न जीविका। आज की शिक्षा व्यवस्था ऐसी है कि थोड़ा पढा तो गांव छोड़ा,थोड़ा ज्यादा पढ़ा तो शहर छोड़ा और ज्यादा पढ़ा तो देश छोड़ा। हमारे कॉलेज और विश्वविद्यालय प्रमाण – पत्र विरतण करने वाले संस्था बनते जा रहे हैं । भारत दुनिया का सबसे युवा देशों में से एक है। लेकिन युवाओं के लिए न शिक्षा की समुचित व्यवस्था है और न रोजगार की। शिक्षा पर भारत सरकार द्वारा गठित एक समिति की रिपोर्ट के अनुसार कॉलेजों और विश्वविद्यालयों से उतीर्ण 90 फीसदी स्नात्तक रोजगार प्राप्त करने की दक्षता हासिल नहीं कर पाते। विनोबा जी कहते हैं कि जहां तक तालीम का ताल्लुक है , जितनी गलतियाँ हम कर सकते थे, उतनी हमने की है। एक भी गलती करना बाकी नहीं है। वे कहते है कि भारत जिस आधार पर खड़ा था और मजबूत बना ,वह बुनियाद हमारी तालीम में है ही नहीं। आज हमारे तालीम में आध्यात्मिक तालीम नहीं है। इसलिए आज शिक्षा की यह दुर्दशा है
महात्मा गांधी चाहते थे कि भारत के 7 लाख गांव अपनी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति में स्वावलंबी हो। वे भारत को 7 लाख स्वावलंबी गांवों का गणराज्य बनाना चाहते थे । लेकिन आजादी के बाद देश ने गांधीजी के रास्ते को छोड़ दिया । विकास के लिए पश्चिमी देशों का उपभोक्तावाद ( भोगवाद) पर आधारित विकास का रास्ता अपनाया । जिसका परिणाम यह निकला कि आजादी के 70 साल बाद आज भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था गहरे संकट में है। हमारे अन्नदाता किसान कर्ज के मकड़जाल में फंसकर हताश , निराश हैं । आत्महत्या करने को मजबूर है। पिछले दो दशकों में साढे तीन लाख से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है। इतनी बड़ी संख्या में गुलाम भारत में भी कभी किसानों ने आत्महत्या नहीं की थी। अनुसूचित जाति जनजाति के पूर्व अध्यक्ष डॉ ब्रह्मदेव शर्मा ने अपनी बहुचर्चित 29 में रिपोर्ट में लिखा था कि देश दो हिस्से में बंट गया है इंडिया और भारत । इंडिया आजाद हो गया है और भारत अभी भी गुलाम है। इस भारत में भी एक हिंदुस्तानवां बसता है जिसका रिश्ता भारत के साथ वैसा ही है जैसा भारत का इंडिया के साथ। आजाद देश में गांव आज भी गुलाम है । यह आज की कड़वी सच्चाई है।
गांधी जी ने ग्राम स्वराज की बात की थी। विनोबा जी ने आचार्यों को एक – एक गांव गोद लेने का सुझाव दिया था। लेकिन आज स्मार्ट सिटी बनाने की बात हो रही। शहर बसेंगे तो गांव उजरेंगे। शहरों का विकास गांव के शोषण के बिना नहीं हो सकता। अगर गांव नहीं बचेगा तो देश भी नहीं बचेगा। इसलिए विनोबा जी चाहते थे कि गांव में बनी सामान महंगी और शहर में बनी सामान सस्ती होनी चाहिए। लेकिन आज उल्टा हो रहा है ।
इस विकास नीति में आर्थिक असमानता लगातार बढ़ रही है। नमक सत्याग्रह के समय महात्मा गांधी ने तत्कालीन वायसराय को पत्र लिखकर सवाल खड़ा किया था कि आपकी आमदनी और आम आदमी की आमदनी के बीच 5000 गुना का फासला है फिर भी आप नमक पर टैक्स लगा रहे हैं। आज यह विषमता कई लाख गुना हो गई। आर्थिक विषमता सामाजिक विषमता को जन्म देती है। हिंसा आतंकवाद के लिए जमीन तैयार करती है। हिंसा और आतंकवाद भारत समेत पूरी दुनिया के लिए एक गंभीर चुनौती बन कर उभरी है। इसलिए इस विकास नीति पर पुनर्विचार जरूरी है।
सबसे चिंताजनक पहलू नैतिक मूल्यों में हो रही भारी गिरावट है । आज भ्रष्टाचार के खिलाफ जांच करने वाली देश की शीर्ष संस्था स्वयं भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी है । आज शायद ही कोई क्षेत्र है जो भ्रष्टाचार के आरोपों से मुक्त है। राजनीति में हो रही गिरावट पर पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र की यह टिप्पणी गौर करने लायक है कि यह पता लगाना मुश्किल है कि पानी का स्तर ज्यादा गिरा है या राजनीति का । गांधी जी ने हिन्द स्वराज्य में लिखा कि “अंग्रेज की गुलामी से गरीब हिन्दुस्तान तो छूट जायेगा मगर अनीति से पैसा वाला बना हिन्दुस्तान कभी नहीं छुटेगा।” आज राष्ट्रपिता की बात सच्च साबित हो रही है।
आचार्य विनोबा ने भूदान यज्ञ एवं इसके बाद आचार्यकुल के माध्यम से भारत के नव निर्माण की ठोस पहल की थी। लेकिन इस काम में आज ठहराव सा आ गया है। आज हमारे सामने न विनोबा है न उनकी संकल्पना के आचार्य। इसलिए आज आचार्यकुल के सामने चुनौती विषम है। सौभाग्य की बात है कि आचार्यकुल का श्रेष्ठ विचार हमारे पास , जो इस कठिन दौर में हमारा मार्गदर्शन कर सकता है।
-अशोक भारत
9430918152
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