चला गया हिमालय में महात्मा गांधी का सिपाही
चिपको आंदोलन के प्रणेता के रूप में चर्चित एवं वरिष्ठ सर्वोदयी सुंदरलाल बहुगुणा का निधन अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान , ऋषिकेश में 21 मई को हो गया। वे करोना से पीडित थे । 8 मई , 2021 को उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वे 94 वर्ष के थे।
सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म 9 जनवरी, 1927 को मरोड़ा गांव, टिहरी , उत्तराखंड में हुआ था। उन्होंने लाहौर से स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी । गांधीजी से प्रभावित होकर बाल्यावस्था में ही वे आजादी के आंदोलन में शामिल हो गए। स्नातकोत्तर की पढ़ाई के लिए वे वाराणसी गए। लेकिन आजादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए पढ़ाई छोड़ दी, उन्हें जेल भी जाना पड़ा। इस बीच उनकी मुलाकात गांधीवादी अमर शहीद श्रीदेव सुमन से हुई। 1944 में श्री देव सुमन ने टिहरी के राजा के अत्याचार के खिलाफ अनशन किया। यह अनशन 84 दिनों तक चला। इस अनशन में उनकी मृत्यु हो गई। इस घटना ने बहुगुणा जी के जीवन पर गहरा प्रभाव । उन्होंने संकल्प लिया कि वे कमजोर और वंचितों के हक के लिए अहिंसक आंदोलन करेंगे, जिसका निर्वाह उन्होंने आजीवन किया।
महात्मा गांधी से प्रभावित होकर उन्होंने अस्पृश्यता निवारण का कार्य प्रारंभ किया। इस दौरान वे दलितों के साथ रहते और भोजन करते थे। 1956 में उन्होंने टिहरी शहर में युवाओं के लिए ठक्करबापा छात्रावास खोला । महिलाओं का उत्थान, शिक्षा, दलितों के अधिकार, शराबबंदी के अलावा यहां कई तरह के सर्वोदय आन्दोलन बहुगुणा दंपति चलाते थे। वे 1965-70 के दौरान वे शराबबंदी आंदोलन में शामिल हुए । जब 1969 में सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी तो सरला बहन के नेतृत्व में शराबबंदी के लिए एक शिष्टमंडल मुख्यमंत्री से मिला और पहाड़ों के कई जिलों के लिए शराबबंदी कराई जो अगले 20 वर्षों तक लागू रहा।
उन्होंने बिनोवा भावे, गांधी जी के अनुयाई मीरा बहन और सरला बहन के साथ भी काम किया । वे भूदान आंदोलन में भी शामिल हुए। इसके लिए उन्हें पहाड़ों का दौरा भी किया। इस यात्रा से उन्हें पहाड़ी जीवन , उसकी समस्याओं को समझने मैं मदद मिली । सामाजिक आंदोलन की उनकी समझ में विस्तार हुआ, जिसका लाभ उन्हें आगे के आन्दोलनों में मिला। सरला बहन के साथ काम करते हुए उनकी मुलाकात विमला नौटियाल से हुई , जो प्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता विद्यासागर नौटियाल की बहन थी। उनका विवाह विमला नौटियाल से होना तय हुआ। विमला नौटियाल ने शर्त रखी थी कि उन्हें राजनीतिक कार्य छोड़ना होगा और सामाजिक क्षेत्र में काम करना होगा । उस समय बहुगुणा जी जिला कांग्रेस के अध्यक्ष थे । उन्होंने वही किया जो विमला बहन चाहती थी। उन्होंने पार्टी छोड़ दिया और गांव में आश्रम बनाकर दलितों और गरीबों के शिक्षा के लिए कार्य प्रारंभ किया । इसके लिए उन्होंने पर्वतीय जनजीवन मंडल की स्थापना की। उन्होंने सलियारा में जो आश्रम बनाया वहां खुद मजदूर का काम किया। सिर्फ एक मिस्त्री रखा।
26 मार्च 1974 को पेड़ों की कटाई को ठेकेदारों से बचाने के लिए चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई । गौरा देवी के नेतृत्व में महिलाएं पेड़ों से चिपक गई । और यह आंदोलन चिपको आंदोलन के नाम से देश और दुनिया में विख्यात हुआ। बहुगुणा जी इस आंदोलन में शामिल हुए। इस आंदोलन को पूरे देश दुनिया में पहुंचाने में उन्होंने केंद्रीय भूमिका निभाई और वे चिपको आंदोलन के प्रणेता के रूप में चर्चित हुए।
चिपको आंदोलन का नारा था
जंगल के हैं क्या उपकार
मिट्टी, पानी और वयार
मिट्टी , पानी और वयार
जिंदा रहने के आधार
बहुगुणा जी एक बात अक्सर कहा करते थे कि प्रकृति के साथ हमारे व्यवहार के दुष्परिणाम एक न एक दिन हमें भोगने ही पड़ेंगे। उनके जैसा सादगी पसंद और प्रकृति और पर्यावरण के लिए इतना चिंतित रहने वाला दूसरा कोई मिलना मुश्किल है। 1970 के दशक में जब चिपको आंदोलन हमारे देश से दुनियाभर में पहुंचा , वही उस समय के वैश्विक पर्यावरण संरक्षण का मूल आधार बना । वह हमेशा कहते थे की पारिस्थितिकी और आर्थिकी अलग अलग नहीं है । स्थिर अर्थव्यवस्था स्थिर पारिस्थितिकी पर ही निर्भर है। आज हमें लगता है कि प्रकृति का अंधाधुंध दोहन कर हम अपनी अर्थव्यवस्था को किसी भी ऊंचाई पर पहुंचा सकते हैं, तो हम अपनी जमीन को खिसका रहे हैं । आज वही सब घटित हो रहा है । बढ़ते वैश्विक तापमान को लेकर आज जो दुनिया भर में चर्चाएं हो रही हैं, जिस तरह से जलवायु परिवर्तन का खतरा हमारे ऊपर मंडरा रहा है, इससे सुंदरलाल बहुगुणा की बात सच साबित हो रही है। बहुगुणा जी हिमालय के लिए संतुलित एवं समन्वित नीति के पक्षधर थे। इसके लिए उन्होंने श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर से कोहिमा, नागालैंड तक की 4800 कि.मी. की प्रसिद्ध पदयात्रा की।
90 के दशक में उन्होंने टिहरी डैम विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया । 1995 में भागीरथ के किनारे 45 दिनों तक अनशन किया जिसके फलस्वरूप तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने डैम के पर्यावरणीय प्रभाव के आकलन के लिए एक रिव्यू कमेटी बनाने का आश्वासन दिया। फिर उन्होंने गांधी समाधि, राजघाट पर 74 दिनों का अनशन किया। सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा लंबित होने के बाद भी टिहरी डैम का काम 2001 में प्रारंभ कर दिया गया और उन्हें 24 अप्रैल 2001 को गिरफ्तार कर लिया गया । 2004 में डैम में पानी भरा गया और एक 31जुलाई, 2004 को वे नए आवास कोटी चले गए। बाद में देहरादून आ गये।
हालांकि टेहरी डैम विरोधी आंदोलन सफल नहीं हुआ , लेकिन इस आंदोलन के कारण लोगों में नदी, जंगल, प्रकृति के बारे में व्यापक लोक जागृति हुई । दूसरा आंदोलन के दबाव में सरकार से लोगों को बेहतर पुनर्वास पैकेज मिला।
सुंदरलाल बहुगुणा जी का सत्याग्रह सिर्फ उत्तराखंड तक सीमित नहीं था । वह बड़े बांधों के विरोधी थे । उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों में बड़े बांधों के विरोध में हुए आंदोलन में हिस्सा लिया था, उन्हें ने प्रेरित किया था। 1980 के दशक के मध्य में छत्तीसगढ़ के बस्तर के भोपालपटनम और उससे सटे गढ़चिरौली में इचमपल्ली में प्रस्तावित दो बड़े बांधों को लेकर आदिवासियों ने बड़ा आंदोलन किया । 9 अप्रैल 1984 को मानव बचाओ, जंगल बचाओ आंदोलन के तहत हजारों आदिवासी पैदल चलकर गढ़चिरौली मुख्यालय तक पहुंचे थे । आदिवासी नेता श्याम लाल साह, सामाजिक कार्यकर्ता बाबा आमटे के साथ सुंदरलाल बहुगुणा विशेष रूप आन्दोलन का नेतृत्व करने के लिए वहां उपस्थित थे।
बहुगुणा जी ने भारत ही नहीं दुनिया के अन्य देशों में भी जंगलों को बचाने के लिए चल रहे आन्दोलनों का समर्थन किया, उसमें शामिल हुए। उन्होंने नैरोबी में जंगलों को बचाने के लिए यात्रा की। उनके बारे में रिचर्ड बार्बे बेकर ,जिन्हें मैन ऑफ ट्री कहा जाता है , ने कहा कि ‘जहां तक मेरी जानकारी है पूरे विश्व में सुंदरलाल अकेले व्यक्ति हैं जिन्होंने वृक्षों को बचाने के लिए आमरण अनशन किया। सुंदरलाल मेरे गुरु है और चिपको आंदोलन जंगलों को बचाने का एक अग्रणी आंदोलन है।’
सुंदरलाल बहुगुणा का व्यक्तित्व सरल एवं अनूठा था। सादगी और सरलता उनकी पहचान थी। वह हमेशा आडंबर से दूर रहे ।चाहे भोजन हो या पहनावा उनके जीवन में आडंबर का लेश मात्र भी समावेश नहीं था। वह महात्मा गांधी के सच्चे अनुयाई थे। सादा जीवन उच्च विचार उनके व्यक्तित्व में पूरी तरह चरितार्थ होता था । उनका सोच बहुत ही साफ और स्पष्ट था। उनका कहना था कि मनुष्य को अपने चारों तरफ के पर्यावरण हमेशा बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि वह जीवन के सवालों का सबसे बड़ा उत्तर है।
पर्यावरणविद अनिल जोशी कहते हैं कि ‘सिर्फ पर्यावरण ही नहीं, बल्कि देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने वालों के प्रति उनके मन में अपार श्रद्धा थी । एक बार जब मैं उनसे मिलने गया तो पता चला कि वह उपवास पर है। मैंने पूछा आज आप ने उपवास क्यों रखा, तो उन्होंने कहा आज शहीद दिवस है । आज जब लोगों को शहीद दिवस याद तक नहीं , वहां बहुगुणा जी उनके सम्मान में उपवास पर थे। मुझे नहीं लगता कि गांधी के बाद इतना ज्यादा उपवास रखने वाला और इतनी प्रतिबद्धता वाला कोई दूसरा व्यक्ति इस देश में था।’
वह अपने जीवन में हमेशा संघर्ष करते रहे और जूझते रहे, चाहे पेड़ों को बचाने के लिए चिपको आंदोलन हो, या टिहरी बांध का आंदोलन हो, चाहे शराबबंदी का आंदोलन हो उन्होंने हमेशा अपने को आगे रखा । नदियों, वनों व प्रकृति से प्रेम करने वाले बहुगुणा जी उत्तराखंड में बिजली की जरूरत पूरी करने के लिए छोटी छोटी परियोजनाओं के पक्षधर थे। उनके रोम-रोम में, दिलों दिमाग में हमेशा प्रकृति के प्रति सम्मान और संरक्षण की भावना थी। उन्होंने अपने कार्यों से अनगिनत लोगों को प्रेरित किया। उनमें अनिल प्रकाश जोशी, पर्यावरणविद्, डा. वंदना शिवा , पर्यावरणविद्, बिट्टू सहगल, पत्रकार एवं संपादक, राहुल राम , गायक, घनश्याम सैलानी ,कवि, भवानी भाई, दलित कार्यकर्ता, भीम सिंह नेगी, विजय जड़धारी, बीज बचाओ आंदोलन, शेखर पाठक, इतिहासकार कुवर प्रसून , कवि पांडुरंग हेडगे आदि ख्यातिप्राप्त लोग शामिल हैं।
बीज बचाओ आंदोलन के विजय जड़धारी कहते हैं बीज बचाओ की प्रेरणा चिपको आंदोलन से हुई जिसके प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा थे। प्रसिद्ध पर्यावरणविद् डॉ वंदना शिवा कहती है कि ‘गांधी विचार मैंने अपने माता पिता के अलावा सुंदरलाल बहुगुणा एवं विमला बहुगुणा से सीखा ।’ इतिहासकार शेखर पाठक कहते हैं कि ‘सुंदरलाल बहुगुणा का जो सबसे अहम काम था वह लोगों को मुद्दे से जोड़ना, उस मुद्दे पर उन्हें जागरूक करना। वह इसके लिए युवाओं से संवाद करते थे उनकी बात सुनते थे और जिसमें कोई अच्छी बात लगती उसकी तारीफ करते थे। हमारे जैसे हजारों युवाओं को उन्होंने अपने जीवन से प्रभावित किया।’
पर्यावरणविद् अनिल प्रकाश जोशी कहते हैं कि ‘ मैंने गांधी को नहीं देखा, मगर गांधी का दर्शन मुझे बहुगुणा जी में होता है।’
उनके जीवन पर सर्वक्षेष्ठ किताब लिखने वाले, जीवनकार खड़क सिंह बल्लियां ने उन्हें हिमालय में महात्मा गांधी का सिपाही बताया है।
एक बार पत्रकार वार्ता में उन्होंने कहा था कि वे चावल इसलिए नहीं खाते क्यों कि धान उपजाने में अधिक पानी खर्च होता है। यह पर्यावरण के लिए ठीक नहीं है।
बहुगुणा जी की नजर बहुत पैनी थी । वह आसपास और उसके बदलाव पर लिखते रहते थे, जो समाचार पत्रों में निरंतर प्रकाशित होते थे। उनके लिखे लेख किसी दस्तावेज से कम नहीं हैं।
बहुगुणा जी को अनेक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।1986 में उन्हें जमुनालाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1987 में उन्हें अल्टरनेट नोबेल प्राइज , राइट लाइवलीहुड पुरस्कार मिला। 1987 में उन्हें पदम श्री मिला जिसे उन्होंने टिहरी बांध के विरोध में अस्वीकार कर दिया। 2009 में उन्हें पदम विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
बहुगुणा जी पूछते हैं कि राजनेताओं की बात लोग सुनते, लेकिन काटे जा रहे पेड़ों के बारे में कौन बोलेगा? मरते नदियों के बारे में कौन बोलेगा? पहाड़ों की रक्षा कौन करेगा? अब समय आ गया है कि हम सब काटे जा रहे पेड़ों की आवाज सुने, टूटते पहाड़ों का क्रंदन सुने।
सुंदरलाल बहुगुणा प्रकृति की आवाज थे। उन्होंने प्रकृति के साथ जीया और प्रकृति के संरक्षण के लिए अनवरत संघर्ष किया । उनका जीवन निरंतर सत्याग्रह एवं स्वतंत्रता का प्रतीक था। उनकी मृत्यु से प्रकृति के संरक्षण के लिए संघर्ष करने वाले एक अप्रतिम योद्धा हमेशा के लिए हमसे बिछुड़ गया । उनकी मृत्यु से भारत ने श्रेष्ठत्तम पर्यावरणविद् को खो दिया है, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में भाग लिया था। उनका जीवन एवं कार्य सदियों तक आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रकाश स्तंभ की तरह मार्गदर्शन करता रहेगा।
अशोक भारत
मो. 8709022550
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