चला गया आदिवासियों का मसीहा

भारत जन आन्दोलन के अध्यक्ष,अनुसूचित जाति जन जाति आयोग के पूर्व आयुक्त एवं वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी डॉ बी.डी.शर्मा का देहांत 6 दिसंबर को ग्वालियर में हो गया.वे 85 वर्ष के थे.

डॉ. बी. डी. शर्मा से मेरी पहली मुलाकात1990 में हुई थी. तब मैं एक शिविर में भाग लेने दिल्ली कुछ युवा मित्रों के साथ गया था. वहाँ एक पत्रकार मित्र ने मुझे डॉ शर्मा के बारे में बताया और उनसे मिलने का आग्रह किया. तब डॉ शर्मा अनुसूचित जाति जन जाति आयोग के अध्यक्ष थे. उनसे मेरी मुलाकात उनके सरकारी आवास पर हुई जो तीन घंटे तक चली. उस मुलाकात में उनके विचारों ने तो प्रभावित किया ही उनकी सादगी एवं सरलता ने मुझे मोह लिया. इस प्रकार उनसे मिलाने का सिलसिला चालू हुआ जो अंत तक जारी रहा. जिस सरकारी माकन में वे रहते थे उसके कमरों में दरी बिछाई हुई थी जो देश भर के सामाजिक कार्यकर्ताओं का आश्रय था. स्वयं डॉ शर्मा जिस कमरा में रहते थे वहाँ दरी और चटाई के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था.

चर्चित प्रशासनिक अधिकारी : डॉ शर्मा का व्यक्तित्व बहुआयामी था. वे एक कुशल, ईमानदार एवं संवेदनशील प्रशासनिक अधिकारी थे. मध्य प्रदेश जहाँ उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी के रूप में कार्य किया अपनी ईमानदारी और कुशल प्रशासनिक कार्यों के लिए हमेशा सुर्ख़ियों में रहें. जब वे बस्तर जिला के कलेक्टर थे तो बैलाडीला खदान में कार्य करने वाली आदिवासी महिलाओं का वहाँ के गैर-आदिवासी अधिकारी शारीरिक शोषण करते थे. डॉ शर्मा ने उन्हें आदिवासी महिलाओं के साथ शादी करने के लिए बाध्य किया जो काफी चर्चा में रहा.उनकी ईमानदारी का पुरस्कार हमेशा तबादले के रूप में मिलता रहा लेकिन डॉ शर्मा ने कभी सिद्धांत से समझौता नहीं किया. अंतत:आदिवासी और दलितों के लिए सरकारी नीति से मतभेद के कारण 1981 में उन्हें नौकरी छोडनी पड़ी. 1981 में ही वे नार्थ ईस्ट हिल यूनिवर्सिटी के उपकुलपति बने.उपकुलपति के रूप में काफी सफल रहे.इसी दौरान उन्होंने उपकुलपतियों का अखिल भारतीय यादगार सम्मलेन शिलोंग में कराया.अपनी चर्चित किताब वेब ऑफ़ पावर्टी की रचना इसी दौरान की.

सादगी की मूर्ति : डॉ शर्मा का जीवन सादगी और सरलता से परिपूर्ण था. खादी वस्त्र,सादा भोजन और सार्वजानिक परिवहन सेवा का यात्रा में इस्तमाल, रेल के सामान्य डिब्बों में यात्रा डॉ शर्मा की विशेषता थी जो लोगो को उनसे जोड़ता था. बाबा आमटे कहा करते थे लोगों के साथ जीना न कि लोगो के लिए जीना. डॉ शर्मा ने इसे पूरी तरह चरितार्थ किया. वे उपभोक्तावाद के सख्त खिलाफ थे. वे सादा जीवन उच्च विचार के प्रतिमूर्ति थे.

आदिवासियों के मसीहा : डॉ.शर्मा न केवल देश के आदिवासी मामलों के विशेषज्ञ थे बल्कि उनके ह्रदय में आदिवासियों के प्रति बेहद आदर और सम्मान था. एक बार उन्होंने आदिवासियों की समस्या पर सरकार का ध्यान आकृष्ट करने के लिए देश भर के आदिवासियों को दिल्ली में बुलाया था. बस्तर का एक आदिवासी सड़क पार करते हुए दुर्घटनाग्रस् हो गया. डॉ शर्मा ने न केवल उसका उपचार कराया बल्कि उसे आयोग का अतिथि बना कर हवाई जहाज से बस्तर भेजा और बस्तर के एस डी एम् को हवाई अड्डा से घर तक पहुचने की जिम्मेदारी सौपी. आदिवासियों के दुःख- दर्द देख उनके आँखों में आंसू आ जाते थे. कई बार आदिवासियों की दयनीय स्थिति की चर्चा होने पर मैंने उनके आखें में आंसू देखा था. डॉ शर्मा के अथक प्रयास एवं परिश्रम के कारण आदिवासियों के हक में कई प्रगतिशील कानून बने.भूरिया कमिटी की रिपोर्ट आई. आदिवासियों के स्वायत्त स्वशासन पेसा कानून 1996 एवं वन अधिकार कानून 2006 बना.आयुक्त रहते हुए सरदार सरोवर के विस्थापित आदिवासियों के पुनर्वास अधिकार के सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखा. कोर्ट ने उसे स्वीकारते हुए पहली बार यह सिद्धांत प्रतिपादित किया कि किसी क्षेत्र को डुबोने से कम से कम 6 माह पूर्व विस्थापितों का पुनर्वास अनिवार्य है. “यह मुंबई-दिल्ली तुम्हारा है गाँव में राज हमारा है”. “हमारे गाँव में हमारा राज” का नारा बुलंद करने वाले डॉ शर्मा आदिवासियों के लिए मसीहा से काम नहीं थे.

किसानों के हितैषी : शर्माजी किसानों की मौजूदा दयनीय स्थिति के लिए आज की अन्यापूर्ण व्यवस्था को दोषी मानते थे. वे कहते थे कि किसान गरीब नहीं शोषित है.किसानों के साथ सबसे बड़ा धोखा यह हुआ कि आज की व्यवस्था ने खेती-किसानी के कार्य को अकुशल कार्य माना.इसके कारण ही किसान के श्रम का मूल्य बहुत काम आँका जाता है जो खेती के संकट का सबसे प्रमुख कारणों में से एक है. जबकि खेती किसानी अत्यंत दक्षतावाला कार्य है. वे चुनौती देते थे कि आज का कोई कृषि-स्नातक हल चलाकर दिखाए. उन्होंने किसानों की समस्या पर अनेक किताबें लिखी.

भारत जनांदोलन : व्यवस्था के अन्दर गरीबों, आदिवासियों की हक की लड़ाई लड़ते हुए उन्होंने यह महसूस किया कि व्यवस्था के अन्दर रह कर लड़ाई की एक सीमा है. इसलिए अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग के आयुक्त के बाद उन्होंने कोई पद स्वीकार नहीं किया. आयुक्त रहते हुए उन्होंने आदिवासी,किसान और गरीबों के व्यापक एकता के प्रयास शुरू किए. जल,जंगल और जमींन के आन्दोलन को एकजुट कर भारत जनांदोलन बनाया. वे उसके अध्यक्ष थे.

विद्वान लेखक : शर्माजी उच्च कोट के विद्वान लेखक थे. हिंदी,अंग्रेजी और संस्कृत में सामान रूप से दखल रखते थे.उनका लेखन संसार विशाल था.उन्होंने आदिवासी,किसान, समाजशास्त्र, गणित,साहित्य आदि अनेक विषयों पर किताबें लिखी. उनकी किताबों में रामदीन का सपना, बेजुवान, वेब ओफ पावर्टी, ट्राइबल बिट्रेड, किसान की ललकार किसान की गरीबी का राज,चक्र चक्रवृधि व्याज का, अंकगणित की सैर,गाँव का टूटन किसान का खत्मा,कसम धरतीमाता की,मानवीय समाज का संकट आदि शामिल है.अनुसूचित जाति-जनजाति आयोग के आयुक्त के रूप में उनकी 29 वीं रिपोर्ट काफी चर्चा में रही. इस रिपोर्ट में उन्होंने आदिवासी इलाके में विकास के नाम पर जल,जंगल और जमीन पूंजीपतियों द्वारा हड़पने की पोल खोल दी.उन्होंने बताया देश दो भागों में बंटा है, इंडिया और भारत में.इंडिया आजाद है और भारत अभी भी गुलाम है.भारत में भी हिन्दुस्तन्वा बसता है.भारत का रिश्ता उसके साथ वैसा ही है जैसा इंडिया का भारत के साथ. वे न केवल विद्वान लेकक थे बल्कि एक ओजस्वी वक्ता भी थे.

वे एक ऐसे व्यक्ति थे जो गाँधवादी और नक्सलवादी दोनों में स्वीकार्य थे. उनकी मृत्यु से हमने आदिवासियों, किसानों और गरीबो के हक के लिए लड़नेवाले तथा अन्याय के खिलाफ हमेशा आवाज़ बुलंद करनेवाले ऐसे व्यक्ति को खो दिया है जिसकी भरपाई संभव नहीं.डॉ शर्मा को शत-शत नमन.

अशोक भारत

bharatashok@gmail.com

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