चंपारण में चार दिन
– अशोक भारत
सत्याग्रह के शताब्दी वर्ष में चंपारण में कार्यक्रमों की बाढ़ सी आ गयी है. बिहार सरकार ने बड़े पैमाने पर राज्य में कार्यक्रमों का एलान किया है .इसे अमलीजामा पहनने के लिए राज्य सरकार के प्रशासनिक तंत्र ने पूरी ताकत झोक दी है. स्वयं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन कार्यक्रमों की अगुवाई कर रहे हैं. चंपारण में उन्होंने ८ कि.मी. की पदयात्रा भी की है. केंद्र सरकार भी पीछे नहीं है. स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी १० अप्रैल २०१७ को राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली से चंपारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह की शुरुआत की. केंद्र सरकार द्वारा चंपारण में भी कार्यक्रम आयोजित किये गए जिसमें कई केन्द्रीय मंत्री शामिल हुए. उल्लेखनीय है कि मोतिहारी (चंपारण) केन्द्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह का संसदीय क्षेत्र भी है. कार्यक्रमों की इस होड़ में एन.जी..ओ. भी पीछे नहीं है. माहौल कुम्भ मेले जैसा है जिसमें सब कोई डूबकी लगाना चाहते है.
इस बहाने चंपारण में वरिष्ठ गाँधीजन, सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक, पत्रकार, रंगकर्मी एवं युवा कार्यकर्ता का आना हुआ. चंपारण से सम्बंधित कई पुस्तकों का लोकार्पण हुआ. राष्ट्रीय युवा योजना के निदेशक डॉ एस.एन.सुब्बाराव के नेतृत्व में राष्ट्रीय युवा योजना द्वारा चंपारण सत्याग्रह शताब्दी राष्ट्रीय युवा शिविर का आयोजन किया गया. इस शिविर में १८ राज्यों के ३५० युवक-युवतियों ने भाग लिया. इसमें ब्रह्मविद्या की ज्योति बहन, गुजरात की जम्मू बहन, इंदौर से पुष्पेन्द्र भाई और बंगाल से मानवेन्द्र भाई जैसे वरिष्ठ गाँधीजन भी शामिल हुए.
इस पृष्ठभूमि में मार्च और अप्रैल माह में चंपारण जाने का मौका मिला. दरअसल मेरे मित्र शत्रुघ्न झा के प्रेमाग्रह के कारण ही संभव हुआ. झा जी पिछले बीस वर्षों से चंपारण में गाँधी-विनोबा के विचार और कार्य के प्रचार-प्रसार में लगे है. पहले रेलवे की नौकरी करते हुए कर रहे थे, अब स्वैक्षिक अवकास लेकर पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप कर रहे है. वे ब्रह्म विद्या मंदिर पवनार से भी जुड़े है और चंपारण में अन्त्योदय से सर्वोदय के कार्य में पूरे मनोयोग से लगे हैं.
शत्रुघ्न झा नरकटियागंज में एक आश्रम चलाते है. यहाँ १०० छात्रों का एक विद्यालय है. लीक से हटकर नई तालीम का विद्यालय. प्रथम दिन इन छात्रों के साथ रहने का मौका मिला. ये बच्चे मुशहर जाति के है. ये अनुसूचित जाति की श्रेणी में आते है और पूरी तरह भूमिहीन है. अपने जीवकोपार्जन के लिए मजदूरी पर निर्भर है जो इन्हें नियमित नहीं मिलता. चंपारण में अभी भी १००० एकड़ और ५०० एकड़ वाले जमींदार हैं. इनमे राज, महाराज और प्रभावशाली राजनीतिज्ञ शामिल है. गाँव वाले बताते है कि एक पूर्व मंत्री के पास ५०० एकड़ से ज्यादा जमीन है. मुशहर (अनुसूचित जाति) एवं थारू (जनजाति) भूमिहीन है. राज्य में न्यूनतम मजदूरी लागू है. मनरेगा का भी रेट निर्धारित है. मगर आप इनकी मजदूरी की दर सुनेगे तो हैरान रह जायेंगे. महिलायों की मजदूरी ६० रु और पुरुष का १०० रु है या पांच किलो धान. जी हाँ यह है आज के चंपारण की हकीकत.
मुशहर जाति की स्थिति अत्यंत दयनीय है, बिलकुल तंग हाल. न साफ-सफाई, स्वास्थ्य की सुविधा, न शिक्षा, न रोजगार. राज्य में सभी पार्टियों की सरकार रही है मगर उनकी सुधि लेने की आवश्यकता किसी भी सरकार ने महसूस नहीं की. गाँधी ने एक मन्त्र दिया था जिसे गांधीजी का जंतर भी कहते है. जब भी आप किसी नीति को लेकर दुविधा में हो तो यह ध्यान रखे कि आप की नीति से समाज के सबसे अंतिम आदमी को लाभ मिल रहा या नहीं क्योकि गाँधी हमेशा समाज के अंतिम व्यक्ति की बात करते थे. लेकिन आज के नेता इसे याद रखना नहीं चाहते. चंपारण सत्याग्रह शताब्दी के नाम पर करोड़ों रु. खर्च तो हो रहे हैं लेकिन कोई इनकी बात नहीं कर रहा है. इसलिए सत्याग्रह के नाम पर जो के तामझाम चल रहा है यह गाँधी विचार के अनुरूप बिलकुल नहीं है. हम गांघी के नाम पर उत्सव तो मना सकते है मगर उसे गाँधी का काम मानना गाँधी का अपमान है. गाँधी का मतलब समाज के अंतिम व्यक्ति, गरीबों की बात.
संविधान में सभी नागरिकों को सामान अधिकार प्राप्त है. किसी प्रकार के छुआछूत, भेदभाव का निषेध है इसका उल्लंघन करने पर संवैधानिक उपचार का भी प्रावधान है लेकिन जमीन पर यह कितना उतरा यह यहाँ आकर एहसास हुआ. शत्रुघ्न झा बताते है कि इन बच्चों को पढ़ाने के लिए योग्य शिक्षक नहीं मिलते. जो शिक्षक पढ़ाने आते है मुशहर जाति के नाम सुनकर वापस चले जाते हैं. इसमें ऊची जाति, पिछड़ी और अनुसूचित जाति सभी जाति लोग शामिल हैं. बंजरिया में ५० लडकियों का आवासीय विद्यालय वीणा बहन की देखरेख में चलता है. शिक्षकों की कमी के कारण बड़ी कक्षा की छात्राएं छोटी कक्षा की छात्राओं को पढ़ाती हैं. इस विषम परिस्थिति में अन्त्योदय से सर्वोदय और नई तालीम का प्रयोग चल रहा है. चंपारण सत्याग्रह के शताब्दी वर्ष में उनके बीच आना और साथ रहना एक सुखद अनुभव रहा. महात्मा गाँधी ने चंपारण में शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए विद्यालय खोला था. माता कस्तूरबा को पढ़ाने के लिए कहा, जब बा ने प्रश्न किया कि मै क्या पढऊँगी मै तो निरक्षर हूँ तो बापू ने कहा कि तुम उन्हें स्वास्थ्य के बारे में, सफाई के बारे में और चरित्र निर्माण के बारे में बताना. चरित्र निर्माण और नैतिक विकास गाँधी विचार का मूल है शत्रुघ्न झा एवं उनके सहयोगी इसी काम में लगे है.
पश्चिम चंपारण का एक गाँव है भेरिहारी. यहाँ थारू जाति के लोग रहते है. ये जनजाति भूमिहीन हैं. कुछ वर्ष पूर्व तक यहाँ की महिला शराब बनती और बेचती थी. यही उनका रोजगार था. शत्रुघ्न झा के प्रयास से लगभग तीन वर्ष पूर्व कुछ वरिष्ठ गाँधीजन गाँव आये. उन्होंने महिलाओं से बातचीत किया और महिलाओं ने शराब बनाना और बेचना बंद कर दिया. बिहार में पूर्ण नशाबंदी लागू होने से दो वर्ष पूर्व यहाँ नशाबंदी लागू हो गया. आज उन महिलाओं के पास कोई रोजगार नहीं है. खेतों में मजदूरी करती हैं. वह भी उन्हें नियमित नहीं मिलता. उनके पास न साधन है न जगह जहाँ वे अपना स्वरोजगार खड़ा कर सके. सरकार और प्रशासन के पास इनके लिए कोई योजना नहीं है. चंपारण सत्याग्रह के शताब्दी वर्ष में इनकी कोई बात नहीं कर रहा है.
निलहों के अत्याचार से किसानो को मुक्त कराने के लिए राज कुमार शुक्ल ने गाँधीजी को चंपारण बुलाया था. एक तरह से चंपारण सत्याग्रह खेती के औद्योगिकीकरण का भी विरोध था. आज खेती का तेजी से औद्योगिकीकरण हो रहा है. किसानों की हालत बहुत ख़राब है. लेकिन उसकी कोई चर्चा तक नहीं हो रही है इन आयोजनों में. गांधीजी ने चंपारण में यह अनुभव किया कि सिर्फ तिनकठिया व्यवस्था के समाप्ति से काम चलने वाला नहीं है. इसलिए उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य रोजगार आदि के क्षेत्र में रचनात्मक कार्य खड़ा किया, आज भी राज्य में गाँधी विचार के कुछ बुनियादी विद्यालय मौजूद हैं मगर उनकी स्थिति अत्यंत ख़राब है. सत्याग्रह के शताब्दी वर्ष में उनके पुनर्जीवित करने की कोई योजना सरकार या एन जी ओ के पास नहीं है. हाँ मुख्यमंत्री के स्तर पर घोषणा अवश्य हुई है. लेकिन सिर्फ घोषणा से काम नहीं बनाने वाला. ठोस योजना के साथ कार्य को आगे बढ़ाने कि तैयारी चाहिए. प्रशासन का इन विद्यालयों के प्रति उदासीन नजरिया इस कार्य में बड़ी बाधा है.
राज्य में शिक्षा की स्थिति बहुत दयनीय है. प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक की पूरी व्यवस्था ध्वस्त है. बिहार के छात्र पढाई के लिए अन्य राज्यों का रुख कर रहे हैं. रोजगार के तलाश में मजदूरों का पलायन निरंतर जारी है. बड़ा अच्छा होता अगर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इन सारे सवालों को ध्यान रख कर कुछ ठोस रचनात्मक पहल सत्याग्रह के शताब्दी वर्ष में करते, जो वह करने में सक्षम हैं., बड़ा सकारात्मक सन्देश पूरे देश को जाता. इन आयोजनों से राज्य में वातावरण तो अवश्य बना है प्रसिद्धि तो अवश्य मिलेगी मगर गाँधी का काम नहीं हो सकेगा.
अशोक भारत
मो. 8004438413
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